सफर लंबा था, टिकट कंफर्म था, उम्मीदें ऊँची थीं — लेकिन सीट? वो तो जैसे रेलवे की नींद में कहीं खो गई!
ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर आज यात्रियों ने वो सबक सिखाया जो शायद रेलवे को अब तक किसी ने नहीं सिखाया था।
जब ट्रेन में डिब्बा ही नहीं लगाया गया, तो यात्रियों का सब्र भी आखिर कब तक रहेगा?
हजरत निजामुद्दीन से यशवंतपुर जाने वाली संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में करीब 100 से ज्यादा यात्री सफर कर रहे थे।
इन सभी के पास कंफर्म टिकट थे — लेकिन जिस कोच में इन्हें सीटें मिली थीं, वो कोच ट्रेन में लगाया ही नहीं गया!
यात्री दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे तो सामने खड़ी ट्रेन में उनका डिब्बा नदारद था।
बुजुर्ग परेशान, बच्चे रोते हुए, महिलाएँ थकी हुईं — और रेलवे? वो तो मानो नींद में था।
यात्रियों ने दिल्ली में भी जमकर हंगामा किया, शिकायतें कीं — लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
ट्रेन रवाना हो गई और यात्री बिना सीट के खड़े होकर सफर करने को मजबूर हो गए।
कई लोग एक सीट पर तीन-तीन, चार-चार बैठ गए।
पाँच घंटे तक किसी ने सुध नहीं ली।
अब सोचिए — महंगे टिकट लेकर भी अगर रेलवे इस तरह की लापरवाही करे, तो आम आदमी किससे उम्मीद रखे?
छोटे बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएँ — सब परेशान।
यात्रियों का कहना था कि इतनी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती थी।
जब ट्रेन ग्वालियर स्टेशन पहुँची, तो वहाँ पहले से ही पुलिस और रेलवे के आला अधिकारी मौजूद थे।
हंगामा बढ़ने से पहले ही यार्ड में खड़े एक अतिरिक्त कोच BEI को ट्रेन से जोड़ा गया।
इसके बाद यात्रियों को उस डिब्बे में बैठाया गया और लगभग एक घंटे बाद ट्रेन को रवाना किया गया।
थोड़ी राहत की सांस ली यात्रियों ने — और उनमें से कुछ ने ग्वालियर रेलवे अधिकारियों की तारीफ़ भी की।
कुछ यात्रियों ने नारे लगाए — “BEI पैसेंजर जिंदाबाद!” — और तालियाँ बजाकर कहा कि
“भले ही हमें परेशानी हुई, लेकिन ग्वालियर स्टेशन पर जो सहयोग मिला, वो काबिल-ए-तारीफ़ है।”
पर सवाल अब भी वही है —
क्या अगली बार भी यात्रियों को अपनी सीट जोड़ने के लिए हंगामा करना पड़ेगा?
या फिर रेलवे खुद अपनी नींद से जागेगा?
क्योंकि ये आम जनता का सफर है,
ना कि किसी वीआईपी अफसर का टूर!
रेलवे को याद रखना होगा —
“कंफर्म टिकट देने से पहले, कंफर्म इंतज़ाम भी जरूरी हैं!”
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