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🔥 ग्वालियर की सड़कों पर खून… और जिम्मेदार कौन? 🔥

 मंगलवार को एक युवती पुलिस की जनसुनवाई में जाती है।

आवाज़ उठाती है — "मेरा पति मेरी इज़्ज़त से खेल रहा है, AI से मेरी अश्लील तस्वीरें बना रहा है, रिश्तेदारों को भेज रहा है, मुझे ब्लैकमेल कर रहा है।"

वो पुलिस से सुरक्षा की भीख मांगती है।



लेकिन पुलिस क्या करती है?

फाइल सरकाती है… और युवती को थाने के चक्कर में डाल देती है।

बस, इतना ही!



और शुक्रवार को?

वही आरोपी अरविंद परिहार दिनदहाड़े ग्वालियर स्टेडियम के सामने गोलियां बरसाता है।

3…4 राउंड फायर!

युवती नंदिनी लहूलुहान ज़मीन पर पड़ी है… और आरोपी?

पिस्तौल लिए उसी के पास बैठा है और भीड़ को चुनौती दे रहा है —

“पास आए तो खुद को गोली मार लूंगा।”


पुलिस आती है, आंसू गैस छोड़ती है, भीड़ आरोपी को पीटती है, और किसी तरह पकड़ लेती है।

लेकिन सवाल वही खड़ा है 👇


👉 जब मंगलवार को नंदिनी ने शिकायत की थी, तब पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की?

👉 क्यों उसकी पुकार को “औपचारिकता” समझकर ठुकरा दिया गया?

👉 क्या पुलिस का काम सिर्फ शिकायत लेने तक है या अपराध रोकना भी है?

👉 अगर समय रहते आरोपी पकड़ा जाता… तो क्या नंदिनी को गोलियां झेलनी पड़तीं?


यह सिर्फ एक वारदात नहीं है… ये पुलिस की नाकामी और सिस्टम की बेरहमी का खुला सबूत है।


आज नंदिनी अस्पताल में मौत से लड़ रही है…

लेकिन हकीकत ये है कि उसकी लड़ाई पुलिस की लापरवाही से है, उस सिस्टम से है जिसने उसे दर-दर भटकाया।


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हम सवाल उठाते हैं, क्योंकि यही सच्ची पत्रकारिता है – The Xpose Express!


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