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54 साल बाद मिली शहादत को सलामी

 The Xpose Express

"हम दिखाते हैं वो, जो सब छुपाते हैं"


बांग्लादेश सरकार ने भेजा गार्ड ऑफ ऑनर, सम्मान पत्र और शील्ड


ग्वालियर/भिंड –

1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को आखिरकार 54 साल बाद बांग्लादेश सरकार की ओर से आधिकारिक सम्मान मिला है। बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ते हुए जान कुर्बान करने वाले वीरों के परिवारों को गार्ड ऑफ ऑनर, ‘मुक्तियुद्ध सम्मान पत्र’, स्मृति शील्ड और एक विशेष पुस्तक भेजी गई है।


भावुक कर देने वाला लम्हा



भिंड जिले के शहीद रामलखन गोयल की पत्नी लीला देवी की आंखें उस वक्त भर आईं, जब उन्हें यह सम्मान सौंपा गया। उन्होंने कहा –


सम्मान अच्छा है, लेकिन बहुत देर से मिला। न पार्थिव शरीर मिला, न अंतिम दर्शन। पूरा जीवन इंतज़ार में बीता।”



लीला देवी उस वक्त सिर्फ 14 साल की थीं, जब तार से पति की शहादत की खबर मिली। गौना तक नहीं हुआ था। सालों तक तांत्रिकों, ओझाओं और मंदिरों में पति की वापसी के लिए पूजा-पाठ कराए गए। पर उम्मीद कभी पूरी नहीं हुई। आज भी आंखों में नमी है, पर दिल को थोड़ी राहत जरूर मिली।



“जैसे पति का पत्र आया हो...”


लीला देवी कहती हैं –


“जब जवानों ने सम्मान पत्र और शील्ड दी, तो ऐसा लगा जैसे वर्षों बाद पति ने कोई चिट्ठी भेजी हो।”


एक नहीं, कई परिवारों की अधूरी कहानी


शहीद जयसिंह की पत्नी राजेश्वरी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।


 “उम्र महज 13 साल थी। पति को भर्ती हुए सिर्फ एक साल हुआ था। चेहरा तक याद नहीं। आज जो सम्मान मिला, उसने गर्व का अहसास कराया है, लेकिन खालीपन अब भी वहीं है।”


शहीदों की सूची (भिंड जिला)


रामलखन गोयल – अकोड़ा


जगदीश – फूप


रणवीर सिंह – मंसूरी अटेर


मुलायम सिंह – पांडरी


हाकिम सिंह – दुल्हागन


असरफ – गांद


भीकम सिंह – भिंडारा


जंग बहादुर सिंह – चितावली


मोहन सिंह – कोषण


जयसिंह – कोट


जनवेद सिंह – अमलेड़ी


राज बहादुर सिंह – बल्लो की गढ़िया




सम्मान पत्र में क्या लिखा था?


 “बांग्लादेश का इतिहास भारतीय शहीदों के खून से लिखा गया है। 1971 की आजादी की लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर संघर्ष किया। यह सम्मान सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि उन सैनिकों को सच्ची श्रद्धांजलि है, जिन्होंने एक नए राष्ट्र की नींव अपने खून से रखी।”



🔴 The Xpose Express अब यह सवाल भी उठाता है

  क्या ऐसे वीरों का सम्मान 54 साल बाद होना चाहिए था? क्या हमारी व्यवस्था इन परिवारों को समय पर न्याय और श्रद्धा नहीं दे सकती थी?

देश को बनाने वालों की कुर्बानी को सम्मान समय पर मिले, यही असली राष्ट्रधर्म है।



✍️ रिपोर्ट: The Xpose Express ब्यूरो

📍 भिंड | ग्वालियर | बांग्लादेश विशेष

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