ग्वालियर से बड़ी खबर
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने मध्यप्रदेश सरकार पर फोड़ दिया है एक बड़ा वेतन घोटाले का बम! आरोप है कि प्रदेश में 50 हज़ार कर्मचारी ऐसे हैं, जो ‘दफ्तर में नहीं... पर वेतन खाते में जारी है।’ और ये खेल एक-दो महीने नहीं, पूरे छह महीने से चल रहा है। जी हां, छह महीने से जिन कर्मचारियों का कोई अता-पता नहीं, उनका वेतन भी जारी नहीं हुआ... और अब ये सवाल उठ रहा है कि आखिर ये फर्जीवाड़ा कब से चल रहा था?
माकपा के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का दावा है –
“ये 460 करोड़ रुपए सालाना का घोटाला है, जिसमें नेता और अफसर दोनों मिले हुए हैं। ये वेतन नहीं, सीधे-सीधे खज़ाने की लूट है।”
घोटाले का गणित सुनिए:
– कुल 50,000 कर्मचारी गायब
– इनमें से 40,000 स्थाई, 10,000 संविदा
– 6 महीने से वेतन नहीं उठा, यानी करीब 230 करोड़ का वेतन ठप
– और अगर सालभर का हिसाब जोड़ें, तो करीब 460 करोड़ का घोटाला!
और ये सब खुलासा तब हुआ जब 23 मार्च को प्रदेश के कोषालय आयुक्त ने सभी जिलों को चिट्ठी लिखकर पूछा – “भाई साहब, ये कर्मचारी कहां हैं?” जवाब अब तक अधर में है।
सबसे चौंकाने वाली बात ये –
इन गायब कर्मचारियों के नाम तो दर्ज हैं, पद भी दर्ज हैं, यूनिकोड भी एक्टिव हैं… मगर
– कोई उपस्थिति नहीं,
– कोई कार्य विवरण नहीं,
– और न ही मृत्यु या रिटायरमेंट की कोई जानकारी।
सवाल बड़ा है –
अगर ये लोग दफ्तर में नहीं थे, तो वेतन कहां जा रहा था?
कौन-से बैंक खातों में पैसा ट्रांसफर हो रहा था?
और इन खातों को ऑपरेट कौन कर रहा था?
जसविंदर सिंह कहते हैं –
“अगर ये घोटाला 20 साल से चल रहा है, तो कुल घोटाला 10 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का बैठता है। और इसमें सिर्फ बाबू नहीं, बड़े-बड़े मंत्री भी शामिल हैं।”
माकपा ने की है उच्चस्तरीय जांच की मांग…
लेकिन सवाल ये भी है — क्या ये मांग भी बाकी फाइलों की तरह सरकारी आलमारी में धूल फांकती रह जाएगी?
अब देखना ये है कि ये ‘गायब कर्मचारी’ सामने आते हैं या फिर इस घोटाले की फाइल भी गुम हो जाती है!
— रिपोर्ट, अनिल शर्मा,ग्वालियर ब्यूरो,