ग्वालियर।
सरकारी मोहर बिक रही है।
कलेक्ट्रेट का सिस्टम बिक चुका है।
बंदूक का लाइसेंस अब दलालों के फोन से बन रहा है।
ग्वालियर के कलेक्ट्रेट में ऐसा खुलासा हुआ है, जिसे सुनकर आपका सरकारी सिस्टम से भरोसा उठ जाएगा।
यहां तीन फर्जी हथियारों के लाइसेंस बनाए गए।
भोपाल के गृह मंत्रालय की सील लगाई गई।
कलेक्टर दफ्तर की मोहर ठोकी गई।
और लाइसेंस थमा दिए गए — पैसे लेकर।
पकड़ा गया है सतीश सोनी — ये कोई छोटा-मोटा दलाल नहीं,
ये सिस्टम की चुप्पी पर पलता दलाल है।
अब सुनिए पूरा खेल
महाराजपुरा के गजेंद्र गुर्जर को व्हाट्सएप पर एक लाइसेंस भेजा गया।
कागज़ अधूरा था। शक हुआ।
कलेक्ट्रेट गया — वहाँ बताया गया, "भाई, ये तो फर्जी है!"
पता चला — उसका भाई रामनिवास, सतीश सोनी को ₹40,000 दे चुका है।
डील थी ₹1 लाख की।
यानि खुलेआम हथियारों का सौदा। कलेक्टर की नाक के नीचे।
प्रशासन क्या कर रहा था?
कलेक्टर रुचिका चौहान ने जांच के आदेश दिए —
जांच ADM ने की —
अब पुलिस को केस सौंपा गया है।
लेकिन सवाल ये है —
जब मोहर नकली थी, सील नकली थी, और लाइसेंस असली लग रहे थे,
तो क्या सिर्फ सतीश सोनी अकेला है?
नहीं!
इससे पहले भी ये आदमी अमित राजावत और ऐंदल सिंह के नाम से लाइसेंस बनवा चुका है।
यानि ये धंधा पहली बार नहीं हुआ — ये धंधा “रूटीन” बन चुका है।
आख़िरी बात — सीधे सीधे
जब बंदूक का लाइसेंस फॉर्म से नहीं, व्हाट्सएप से बन रहा हो…
जब सरकारी मोहर ₹40 हज़ार में बिक रही हो…
तो समझिए — देश में कानून नहीं, सिर्फ लेन-देन चल रहा है।
रिपोर्ट:- अनिल शर्मा