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ग्वालियर-चंबल में BJP के दो दिग्गजों के बीच सियासी शीत युद्ध तेज, अब 'श्रेय' की जंग आई सतह पर

 ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति एक बार फिर दो बड़े नेताओं की जुबानी जंग के चलते चर्चा में है। एक ओर हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, तो दूसरी ओर हैं केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। इन दोनों नेताओं के बीच लंबे समय से चल रही राजनीतिक खींचतान अब खुलेआम सामने आने लगी है।

इस सियासी तकरार की ताजा कड़ी है नरेंद्र सिंह तोमर का वायरल बयान, जिसमें उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सिंधिया पर हर विकास कार्य का श्रेय लेने का आरोप लगाया। तोमर ने कहा—


> "कुछ लोग हर काम का श्रेय खुद लेना चाहते हैं। कहते हैं – मैंने ये किया, मैंने वो किया... जबकि सच्चाई ये है कि विकास सरकार करती है, कोई एक व्यक्ति नहीं।"


उन्होंने अपने समर्थक सांसद शिवमंगल तोमर के भाषण का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि किसी सांसद या नेता ने पुल या सड़क बनवाई, तो वह उनकी नहीं, बल्कि पार्टी की उपलब्धि है।


🎯 निशाना साफ, नाम नहीं


हालांकि नरेंद्र तोमर ने किसी नेता का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा साफ तौर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर था, जो आए दिन सार्वजनिक मंचों पर खुद को विकास योजनाओं का चेहरा बताते हैं।


⚔️ गुटबाजी और कार्यक्रमों से दूरी


ग्वालियर के सांसद भारत सिंह कुशवाह, जो तोमर खेमे के माने जाते हैं, लगातार सिंधिया के कार्यक्रमों से दूरी बनाए हुए हैं।


विवेकानंद नीडम ओवरब्रिज और


तानसेन रोड को जोड़ने वाला ब्रिज



— इन दोनों परियोजनाओं का उद्घाटन सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि दोनों खेमे उद्घाटन का श्रेय अपने-अपने नेता को दिलवाना चाहते थे।


🏥 एमआरआई मशीन का मामला भी टकराव की भेंट चढ़ा


ग्वालियर जिला अस्पताल की एमआरआई मशीन भी नेताओं की खींचतान की शिकार हुई। करीब दो महीने तक लोकार्पण टलता रहा, जब तक दोनों खेमों के बीच सहमति नहीं बनी।


🧭 पुरानी भाजपा बनाम नई भाजपा?


तोमर पार्टी के पुराने और अनुभवी चेहरे हैं, जबकि सिंधिया भाजपा में comparatively नवागंतुक, लेकिन ताकतवर नेता हैं।


पीएम मोदी तक सिंधिया की सीधी पहुंच है और


एक बार तो उन्होंने सार्वजनिक मंच से सिंधिया को "अपना दामाद" तक कह दिया था।



इस कारण से पार्टी के भीतर ये भी चर्चा है कि नरेंद्र तोमर का बयान एक तरह की राजनीतिक हताशा का संकेत हो सकता है, जो भाजपा के भीतर दो धड़ों की अदृश्य लेकिन तीव्र लड़ाई को सामने ला रहा है।



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