ग्वालियर में एक बार फिर हाईकोर्ट ने सरकार से सीधा सवाल किया है… सवाल ये कि जब जबलपुर के मदन महल की पहाड़ी को अतिक्रमण मुक्त कर वहां सौंदर्यीकरण हो सकता है, तो आखिर ग्वालियर की सत्यनारायण टेकरी पर ऐसा क्यों नहीं हो रहा?
ग्वालियर… ये शहर अपनी शान और विरासत के लिए जाना जाता है। लेकिन इस शान पर लगा है अतिक्रमण का दाग।
जी हां, सत्यनारायण की टेकरी, जो कभी रियासतकाल में वॉच टावर हुआ करती थी… दुश्मनों की हरकत पर नजर रखने की जगह… अब खुद दुश्मनों यानी अतिक्रमणकारियों के कब्ज़े में है।
हाईकोर्ट ने सरकार को पूछा है— "जब जबलपुर कर सकता है तो ग्वालियर क्यों नहीं?"
और ये सवाल इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि सत्यनारायण टेकरी पर सिर्फ अतिक्रमण ही नहीं है, बल्कि वहां के मंदिर और ऐतिहासिक स्मारक भी दबाव में हैं।
याचिका में बड़ा खुलासा—
👉 एक स्थानीय पार्षद ने टेकरी की जमीन को औने-पौने दामों में नोटरी से बेच डाला।
👉 मंदिरों की जमीन सिकुड़ गई, परिसर छोटा होता गया।
👉 और मंदिर के पुजारियों को असामाजिक तत्व परेशान करने लगे।
खुद जस्टिस शील नागू ने जब भ्रमण किया था तो अपनी आंखों से ये हालात देखे थे। उसी के बाद हाईकोर्ट ने सूमोटो जनहित याचिका दायर की। लेकिन… सरकारी कार्रवाई अब तक ढीली-ढाली ही रही।
अब हाईकोर्ट ने दूसरी बार सरकार से जवाब तलब किया है। सुनवाई अक्टूबर के पहले हफ्ते में होगी। सवाल ये है कि क्या ग्वालियर की टेकरी भी कभी मदन महल की पहाड़ी की तरह अतिक्रमण से आज़ाद होगी… या फिर इतिहास सिर्फ कागजों में दबा रह जाएगा?
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